क्या है दिमाग का एमआरआई (MRI) व इसकी सम्पूर्ण प्रक्रिया और खर्च ?


क्या है दिमाग का एमआरआई (MRI) व इसकी सम्पूर्ण प्रक्रिया और खर्च ?

जैसे शरीर में कोई परेशानी होती है तो उसके बारे में जानने के लिए आपको एक्स-रे की जरूरत होती है ठीक उसी तरह दिमाग में अगर कोई परेशानी व्यक्ति के होती है तो इसके लिए उसे एमआरआई (MRI) स्कैन करवाने की जरूरत पड़ती है। इसके अलावा इस स्कैन का चयन किन्हें करना चाहिए और इसको करवाने की सम्पूर्ण प्रक्रिया क्या है इसके बारे में भी बात करेंगे ; 

किन लोगों को एमआरआई (MRI) करवाने की जरूरत पड़ती है ?

  • एमआरआई स्कैन का उपयोग उन स्थितियों की जांच या निदान करने के लिए किया जाता है जो नरम ऊतकों को प्रभावित करती हैं, जैसे कैंसर सहित ट्यूमर, नरम ऊतकों की चोटें जैसे क्षतिग्रस्त स्नायुबंधन आदि।
  • मस्तिष्क व रीढ़ की हड्डी में कुछ तकलीफ होने पर।
  • ब्रेस्ट कैंसर की सम्भावना वाली महिलाओं के लिए ब्रेस्ट कैंसर स्क्रीनिंग।
  • कमर या घुटनों जैसे जोड़ों में चोट का पता लगाने के लिए एमआरआई (MRI) स्कैन का चयन करना चाहिए।

दिमाग का एमआरआई (MRI) स्कैन कैसे किया जाता है?

  • एमआरआई (MRI) स्कैनर एक सिलेंडरनुमा मशीन होती है जो दोनों तरफ़ से खुली होती है। वही जो व्यक्ति एमआरआई की जांच करवाते है उन्हें मोटराइज़्ड बेड पर लेटना होता है।  
  • इसके अलावा कुछ मामलों में शरीर के किसी ख़ास हिस्से पर फ़्रेम रखा जाता है जैसे कि सिर या छाती पर। 
  • इसके बाद जब आप मशीन में लेट जाते है तो चुंबकीय क्षेत्र अस्थायी रूप से आपके शरीर में पानी के अणुओं को पुन: व्यवस्थित करता है। रेडियो तरंगें इन व्यवस्थित हुए परमाणु से संकेतों का उत्पादन करती हैं। इनका उपयोग क्रॉस-सेक्शनल एमआरआई चित्रों को बनाने के लिए किया जाता है।

दिमाग के एमआरआई (MRI) का खर्चा कितना आता है ?

  • एमआरआई स्कैन की औसतन लागत 4000 भारतीय रूपए से लेकर 25,000 के बीच है। वही आपके स्कैन की लागत आपने शरीर के किस हिस्से का स्कैन करवाना है इस बात पर भी निर्भर करता है। 
  • वही लुधियाना में MRI का खर्च डॉक्टर द्वारा लिया गया शुल्क, अस्पताल की प्रतिष्ठा और मामले की जटिलता जैसे कई कारकों के आधार पर लागत अत्यधिक परिवर्तनशील हो जाती है। 

क्या है दिमाग का एमआरआई (MRI) स्कैन ?

  • दिमाग का एमआरआई (MRI) स्कैन करवाने का मतलब ये जानना होता है की आप किस तरह से अपनी परेशानियों के बारे में जान सकते है इसके अलावा दिमाग का एमआरआई (MRI) एक मशीन के द्वारा किया जाता है। 
  • ये मशीन मदद करती है ये जानने के लिए की आखिर व्यक्ति के दिमाग में कौन-सी बीमारी चल रही है। 

तो वही अगर आपको दिमाग को छोड़कर शरीर के किसी हिस्से में परेशानी है तो इससे बचाव के लिए आपको लुधियाना में CT स्कैन का खर्च जानके इसे करवाने के बारे में जरूर विचार करना चाहिए।

दिमाग के एमआरआई (MRI) स्कैन के लिए बेहतरीन हॉस्पिटल ?

  • अगर आपको अपने दिमाग का एमआरआई (MRI) सही लागत में करवाना है तो इसके लिए आपको कल्याण डायग्नोस्टिक्स सेंटर का चयन करना चाहिए। इसके अलावा इसकी जाँच को करवाने के बाद आप किस तरह की परेशानियों के बारे में जानकारी हासिल कर सकते है, इसके बारे में हम आपको उपरोक्त बता चुके है। 

निष्कर्ष :

दिमाग का एमआरआई (MRI) स्कैन करवा कर आप किस तरह से अपनी परेशानियों या बीमारियों के बारे में जानकारी हासिल कर सकते है इसके बारे में आपको पता चल चूका होगा। तो अगर आप चाहते है की आपको ज्यादा खर्चा न करना पड़े अपने स्कैन को लेकर तो उपरोक्त सेंटर का चयन जरूर करें।

जानिए क्या अंतर है, एमआरआई (MRI) और सीटी (CT) स्कैन में ?

एमआरआई (MRI) और सीटी (CT) स्कैन जिसको लेकर बहुत से लोगों में कन्फूज़न रहती ही की आखिर इन दोनों में अंतर क्या है, और किस बीमारी को जानने के लिए हमे सीटी (CT) और एमआरआई (MRI) स्कैन का चयन करना चाहिए। तो अगर आपमें भी इन दोनों स्कैन को लेकर दुविधा है, तो इसके लिए आप आर्टिकल को अंत तक जरूर पढ़े और साथ ही हमारी पूरी कोशिश रहेगी की हम आपके दुविधा का समाधान इस छोटे से आर्टिकल के माध्यम से दे सके ;

क्या है एमआरआई (MRI) स्कैन ?

  • रेडियो तरंगों और चुम्बकों का उपयोग करके, आपके शरीर के अंदर की वस्तुओं को देखने के लिए MRI का उपयोग किया जाता है। 
  • इसमें एक निरंतर चुंबकीय क्षेत्र और रेडियो फ्रीक्वेंसी आपके शरीर में फैट और पानी के अणुओं से उछलती है। रेडियो तरंगों को मशीन में एक रिसीवर के माध्यम से प्रेषित किया जाता है, जिसे शरीर की एक छवि में अनुवादित किया जाता है। 
  • वहीं एमआरआई की बात करें तो यह एक लाउड मशीन है। आमतौर पर, इस मशीन के अंदर काफी शोर होता है, इसलिए इस शोर से बचाने के लिए डॉक्टर आपको इयरप्लग या हेडफोन देते है।

एमआरआई (MRI) स्कैन की जरूरत कब पड़ती है ?

  • जब मस्तिष्क में चोट लगी हो। 
  • कैंसर होने पर। 
  • रीड़ की हड्डी में चोटें को जानने के लिए। 
  • आंखों की समस्या होने पर। 
  • भीतरी कान की समस्याओं में। 
  • दिल की बीमारी में। 
  • गठिया की समस्या होने पर। 
  • हड्डी में संक्रमण के कारण। 
  • जोड़ों से जुड़ी गंभीर बीमारियों में। 
  • रीढ़ की हड्डी में डिस्क की समस्या। 
  • स्तन कैंसर के कारण। 
  • लिवर और किडनी में समस्या होने पर।

एमआरआई (MRI) के दौरान क्या होता है ?

  • आप परीक्षण के दौरान जोर से थंपिंग या टैपिंग ध्वनि सुन सकते है। 
  • आप टेस्टिंग के दौरान एक मरोड़ महसूस कर सकते है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि एमआरआई आपके शरीर में नसों को उत्तेजित करता है। 
  • वहीं एमआरआई स्कैन में 20 से 90 मिनट का समय लग सकता है। 

एमआरआई (MRI) टेस्ट करवाने से पहले एक बार लुधियाना में MRI का खर्च कितना है, इसके बारे में जरूर जानकारी हासिल करें।

क्या है सीटी (CT) स्कैन ?

  • सीटी स्कैन विशेष एक्स-रे परीक्षण है, जो एक्स-रे और एक कंप्यूटर का उपयोग करके शरीर की क्रॉस-सेक्शनल छवियां उत्पन्न करते है। इसे सिर से लेकर पैर तक शरीर के किसी भी हिस्से की जाँच करने के लिए किया जाता है। सीटी स्कैन द्वारा दी गई जानकारी छाती के एक्स-रे से कहीं अधिक है।
  • वहीं सीटी (CT) स्कैन गर्भवती महिलाओं को नहीं कराना चाहिए।

किन बीमारियों को जानने के लिए सीटी (CT) स्कैन का चयन किया जाता है ?

  • मांसपेशियों संबंधी समस्या को। 
  • हड्डी से संबंधित गंभीर बीमारियों को। 
  • कैंसर के इलाज के दौरान भी आप इससे अपनी जाँच करवा सकते है। 
  • शरीर की किसी अंदरूनी चोट के इलाज के लिए। 
  • हार्ट से संबंधित समस्याओं या बीमारी के इलाज को करवाने के लिए भी आप इस स्कैन का चयन कर सकते है।

कैसे किया जाता है सीटी (CT) स्कैन ?

  • सीटी स्कैन के लिए रोगी को सीटी स्कैन मशीन के अंदर लेटाया जाता है, यह मशीन सुरंग की तरह होती है जिस पर लेटाकर व्यक्ति को अंदर ले जाया जाता है। 
  • शरीर के जिस हिस्से का सीटी स्कैन करना होता है, उसी हिस्से के फोटोग्राफ लिए जाते है। 
  • सीटी स्कैन के बाद फोटो कंप्यूटर में भेजी जाती है, फिर इनकी थ्री डी पिक्चर्स बनाकर असेंबल कर दिया जाता है, जिसकी स्टडी करके डॉक्टर्स रोगी की सही स्थिति की जानकारी प्राप्त कर लेते है। 
  • इस टेस्ट को कराने में बहुत ही कम समय लगता है और इस टेस्ट से आपको डरने की जरूरत नहीं है, क्युकी इसमें आपको कोई कट नहीं लगाया जाता है।

लुधियाना में CT स्कैन का खर्च कितना आता है, इसके बारे में जानने के बाद ही इस टेस्ट का चयन करें।

सुझाव :

यदि आप एमआरआई (MRI) और सीटी (CT) स्कैन करवाने के बारे में सोच रहें है, तो इसके लिए आपको कल्याण डायग्नोस्टिक्स सेंटर का चयन करना चाहिए, वहीं ये दोनों टेस्ट सही लागत में इस सेंटर में किया जाता है।

 

एमआरआई (MRI) सर्वाइकल स्पाइन करवाने के क्या है लागत, परिणाम व सम्पूर्ण जानकारी ?

एमआरआई (MRI) जोकि हर बीमारी को पकड़ने में काफी मददगार साबित होती है। साथ ही एमआरआई की मदद से हम अंधरुनि समस्या को जानकर उसका इलाज अच्छे से करवा सकते है। वहीं एमआरआई से सर्वाइकल स्पाइन का इलाज व जाँच को कैसे किया जाता है, इसके बारे में आज के लेख में चर्चा करेंगे ;

एमआरआई (MRI) कैसे सहायक है सर्वाइकल स्पाइन की जाँच के लिए ?

  • एमआरआई सर्वाइकल स्पाइन रीढ़ के सर्वाइकल क्षेत्र (गर्दन के पीछे की तरफ) की जांच और पता लगाने में मदद करता है। यह गर्दन और रीढ़ की अंदरूनी चोट या फ्रैक्चर का पता करने में मदद करते है। 
  • यदि आपको गर्दन के क्षेत्र में दर्द है तो डॉक्टर आमतौर पर इसकी सलाह देते है। यह परीक्षण गर्दन और सर्वाइकल स्पाइन के कोमल ऊतकों का 3-डी दृश्य देता है। वही लुधियाना में MRI का खर्च या सर्वाइकल स्पाइन की कीमत 3000 रुपये से लेकर 6000 रुपये तक है।

सर्वाइकल स्पाइन के MRI में क्या शामिल हो सकते है ?

  • सात कशेरुक जो C1 से C7 तक होते है। 
  • रक्त वाहिकाएं। 
  • नसे। 
  • पट्टा। 
  • बंधन। 
  • उपास्थि आदि इसके MRI में शामिल होते है। 

क्या है सर्वाइकल MRI स्कैन ? 

  • सर्वाइकल एमआरआई (मैग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग) गर्दन के पीछे की हड्डियों, जिन्हें सर्वाइकल स्पाइन कहा जाता है, की विस्तृत छवियां उत्पन्न करने के लिए एक चुंबकीय क्षेत्र और रेडियो तरंगों का उपयोग करते है।  
  • परीक्षण के दौरान, एमआरआई मशीन व्यक्ति के शरीर में एक अस्थायी चुंबकीय क्षेत्र बनाती है, जो शरीर में मौजूद हाइड्रोजन परमाणुओं को क्षेत्र के साथ संरेखित करने के लिए मजबूर करती है।
  • अगर आप गर्दन के पीछे की हड्डियों या सर्वाइकल स्पाइन की समस्या से परेशान है, तो इससे बचाव के लिए आपको लुधियाना में बेस्ट रेडियोलॉजिस्ट से अपनी जाँच को करवाना चाहिए।

सर्वाइकल स्पाइन MRI का उद्देश्य क्या है ?

  • रीढ़ की हड्डी में चोट लगी हो तो इसके लिए इस स्कैन का चयन किया जाता है।  
  • हड्डियों या कोमल ऊतकों में ट्यूमर या कैंसर होने पर भी आप इस स्कैन का चयन कर सकते है। 
  • हर्नियेटेड डिस्क होने पर इस स्कैन का चयन करना।
  • डिस्क फलाव की समस्या होने पर इसका चयन करना। 
  • जन्मजात या शारीरिक जन्म दोष होने पर इस स्कैन का चयन करना।
  • हड्डियों की बनावट में असामान्यता के आने पर इसका चयन करना।
  • स्पाइनल स्टेनोसिस की समस्या होने पर इसका चयन करना। 
  • ऊपरी अंगों में अकड़न होने पर इसका चयन करना।

MRI सर्वाइकल स्पाइन के विभिन प्रकार क्या है ?

  • WSS के साथ MRI का सर्वाइकल स्पाइन करवाना। 
  • एमआरआई सर्वाइकल स्पाइन फ्लेक्सन-एक्सटेंशन। 
  • ब्रेन जांच के साथ एमआरआई सर्वाइकल स्पाइन की जाँच। 
  • मल्टीपल स्केलेरोसिस का पता लगाने के लिए। 
  • ALS के पहचान के लिए। 
  • गतिशील एमआरआई सर्वाइकल स्पाइन।
  • कंट्रास्ट के साथ एमआरआई सर्वाइकल स्पाइन। 

सर्वाइकल स्पाइन MRI क्यों किया जाता है ?

  • गर्दन, बांह या कंधे में गंभीर दर्द जो इलाज के बाद भी कम ना हो तो इस जाँच का चयन करें। 
  • पैर में कमजोरी या सुन्नता जैसे लक्षणों के साथ गर्दन में दर्द होने पर। 
  • रीढ़ की हड्डी के जन्म दोष या रीढ़ की हड्डी में चोट का पता लगाना। 
  • रीढ़ की हड्डी में संक्रमण या ट्यूमर का पता लगाने के लिए। 
  • रीढ़ की हड्डी में गठिया का पता लगाने के लिए। 
  • परीक्षण स्पाइन सर्जरी से पहले या बाद में भी किया जा सकता है।

सर्वाइकल MRI कैसे किया जाता है ?

  • रेडियोग्राफर आपको स्कैन कक्ष में प्रवेश करने से पहले डेन्चर और विग सहित सभी धातु की वस्तुओं को हटाने का निर्देश देंगे। 
  • वे आपको हॉस्पिटल गाउन पहनने के लिए कह सकते है। 
  • आपको एक बिस्तर पर लेटना होगा, जो एमआरआई स्कैनर मशीन के अंदर चला जाएगा। 
  • प्रक्रिया में एक डाई (कंट्रास्ट) की आवश्यकता हो सकती है, जो परीक्षण से पहले आपकी बांह में एक नस के माध्यम से दी जाएगी। 
  • कंट्रास्ट कुछ क्षेत्रों को अधिक साफ-साफ देखने में मदद करता है। 
  • आपको बिल्कुल स्थिर होकर लेटना होगा, क्योंकि हरकतें तस्वीरों को धुंधला बना सकती है। 
  • परीक्षण आमतौर पर 30-60 मिनट तक चलता है लेकिन इसमें अधिक समय भी लग सकता है। 

सर्वाइकल MRI के जोखिम क्या है ?

  • कंट्रास्ट से एलर्जी की प्रतिक्रिया को करना, जोकि काफी जोखिम भरा होता है। 
  • एमआरआई मशीन में मौजूद मजबूत चुंबक पेसमेकर और अन्य धातु प्रत्यारोपण में खराबी या शरीर के अंदर हिलने-डुलने का कारण बन सकते है। 
  • उपयोग किया जाने वाला कंट्रास्ट उन किडनी रोगों वाले लोगों के लिए हानिकारक हो सकता है जिन्हें डायलिसिस की आवश्यकता होती है।

सुझाव :

सर्वाइकल स्पाइन में अगर आपको दिक्कत है तो इस समस्या का सामना करने के लिए आपको एमआरआई का चयन करना चाहिए, क्युकी एमआरआई की मदद से ये जानना काफी आसान हो जाता है की व्यक्ति को किस तरह की समस्या है। 

इसके अलावा आप चाहें तो इस टेस्ट को कल्याण डायग्नोस्टिक्स हॉस्पिटल से भी करवा सकते है। 

एमआरआई (MRI) स्कैन स्पाइन लम्बर यानि (पीठ में होने वाले दर्द) के मामलों में कैसे है सहायक ?

एमआरआई (MRI) स्कैन जोकि हर तरह की समस्या का स्पष्ट रूप में मूल्यांकन करते है साथ ही इसका चयन करके हमें सब कुछ स्पष्ट हो जाता है की हम किस तरह की बीमारी से जूझ रहें है और साथ ही एमआरआई (MRI) स्कैन डॉक्टरों के लिए काफी सहायक माना जाता है। इसके अलावा एमआरआई स्पाइन लम्बर की समस्या को कैसे विस्तार से बाहर लाने में हमारी मदद करेंगे इसके बारे में हम सम्पूर्ण लेख में चर्चा करेंगे ;

क्या है एमआरआई (MRI) स्कैन ?

  • MRI (मैग्नेटिक रेसोनेंस इमेजिंग) एक जांच की प्रक्रिया है। इसमें शरीर के अंदर की उच्च गुणवत्ता वाली, विस्तृत तस्वीरें बनाने के लिए एक बड़े चुंबक, रेडियो तरंगों और कंप्यूटर का उपयोग किया जाता है। 
  • एमआरआई जांच का चयन अगर कोई भी करता है, तो उसे दर्द की समस्या का सामना नहीं करना पड़ता, इसलिए इस स्कैन का चयन बच्चे भी कर सकते है। 

इस स्कैन का चयन करने से बेशक आपको दर्द की समस्या का सामना नहीं करना पड़ता, लेकिन जरूरी है की अगर आप इस स्कैन का चयन करने जा रहें है तो इससे पहले लुधियाना में MRI का खर्च कितना है इसके बारे में जरूर जानकारी हासिल करें।

एमआरआई (MRI) स्कैन से क्या-क्या बाते सामने आती है ?

  • एमआरआई स्कैन का चयन जब आप करते है तो आपको मस्तिष्क, रीढ़, जोड़ों, हृदय, लीवर, और कई अन्य अंगों जैसे शरीर के कोमल-ऊतक व अन्य संरचनाओं का पता एमआरआई (MRI) चित्रों के द्वारा आसानी से पता लग जाता है। 
  • कैंसर, हृदय की बीमारी, मांसपेशियों और हड्डियों की बीमारियों, और कई अन्य बीमारियों का डायग्नोसिस एमआरआई स्कैन से किया जा सकता है। इस स्कैन की मदद से हम रीढ़ की हड्डी व पीठ की हड्डी में दर्द की समस्या का भी पता लगा सकते है।

एमआरआई (MRI) स्पाइन लम्बर स्कैन में किस तरह की तकनीक का प्रयोग किया जाता है 

  • चुंबकीय अनुनाद इमेजिंग (एमआरआई) स्कैन एक सामान्य प्रक्रिया है, जिसका उपयोग रीढ़ की हड्डी और अन्य अंगों के निदान के लिए भी किया जाता है। 
  • इस प्रक्रिया में चुंबकीय तरंगों का इस्तेमाल रीढ़ की हड्डी के विस्तृत चित्र का निर्माण करने के लिए उपयोग किया जाता है। 
  • इसमें मरीज को मेज़ पर लेटा कर एमआरआई मशीन के अंदर ले जाया जाता है, जो, एक बड़े डोनट की तरह लगता है। 
  • एमआरआई स्कैन आक्रामक नहीं है और यह एक दर्द रहित प्रक्रिया है। 
  • वहीं एक्स-रे और सीटी स्कैन के विपरीत, एमआरआई स्कैन में विकिरण का उपयोग नहीं होता है, इसलिए यह एक सुरक्षित प्रक्रिया है।

एमआरआई (MRI) स्पाइन लम्बर के प्रकार क्या है ?

  • एमआरआई स्पाइन लम्बर के लिए कंट्रास्ट एजेंट शरीर में इंजेक्शन या मौखिक रूप से दिया जाता है। कंट्रास्ट एजेंट आमतौर पर बेहतर छवियाँ देता है, जबकि बिना कंट्रास्ट इसके विपरीत है। हालांकि, आपके डॉक्टर यह फैसला करते है कि आपको कौन-से टेस्ट के लिए जाना है।
  • अधिकांश एमआरआई स्कैन स्पाइन लम्बर में रोगी को लिटाकर मशीन में ले जाने की आवश्यकता होती है। जो लोग बंद मशीन में जाने से डरते है, उनके लिए यह एक चिंता का विषय हो सकता है। तकनीशियन उन मामलों में एनिस्थिसिया दे सकते है या वह ओपन एमआरआई का विकल्प भी सामने वाले मरीज को दे सकते है, पर ध्यान रहें ये स्कैन थोड़ा मेहगा है।
  • टेस्ला चुंबकीय शक्ति की माप की एक इकाई है। एमआरआई मशीन 1.5 टेस्ला या 3 टेस्ला हो सकती है। 3 टेस्ला एमआरआई स्कैन मशीन तेज गति से बेहतर गुणवत्ता की छवियों का उत्पादन कर सकती है। हालांकि, यह अधिक महंगी होती है। इसके अतिरिक्त, भारत में हो रहे अधिकांश एमआरआई स्कैन के लिए 1.5 टेस्ला मशीन पर्याप्त है।
  • स्पाइन लम्बर क्षेत्र के लिए आवश्यक जानकारी के आधार पर, डॉक्टर स्क्रीनिंग या सामान्य एमआरआई की सिफारिश कर सकते है। 

ध्यान रहें अगर आपको स्पाइन लम्बर करवाना है, तो इसके लिए आप लुधियाना में बेस्ट रेडियोलॉजिस्ट का चयन करें।

स्पाइन लम्बर स्कैन को क्यों कराया जाता है ?

  • पीठ के निचले हिस्से में लगातार दर्द अगर हो तो आप इस स्कैन का चयन कर सकते है। 
  • रीढ़ की हड्डी के निचले भाग में चोट लगने पर। 
  • मस्तिष्क या रीढ़ की हड्डी में कैंसर के लक्षण का पता लगाने पर। 
  • रीढ़ की हड्डी में जन्म से कोई समस्या होने पर। 
  • पैरों के सुन्न पड़ने पर। 
  • पीठ के निचले हिस्से में सर्जरी होने पर।

सुझाव :

अगर आप पीठ या रीढ़ की हड्डी में दर्द की समस्या से परेशान है तो इससे बचाव के लिए आपको स्पाइन लम्बर स्कैन को जरूर करवाना चाहिए, वहीं आप चाहें तो इस स्कैन को कल्याण डायग्नोस्टिक्स हॉस्पिटल से भी करवा सकते है।

लिवर फाइब्रोस्कैन उपचार क्या है और ये किस काम के लिए प्रयोग में लाया जाता है ?

लिवर फाइब्रोस्कैन एक नवीन चिकित्सा प्रक्रिया है जिसका उपयोग लिवर के स्वास्थ्य का आकलन करने में किया जाता है। यह लीवर की कठोरता को मापता है, जो फाइब्रोसिस या घाव का एक प्रमुख संकेतक है, जो विभिन्न लीवर स्थितियों के परिणामस्वरूप हो सकता है। यह गैर-इनवेसिव तकनीक लिवर फाइब्रोसिस के स्तर को निर्धारित करने के लिए एक विशेष अल्ट्रासाउंड मशीन का उपयोग भी करती है, तो आइये जानते है फाइब्रोसिस के बारे में ;

लिवर फाइब्रोस्कैन कैसे काम करता है ?

फाइब्रोस्कैन के दौरान, रोगी अपनी पीठ के बल लेट जाता है और तकनीशियन त्वचा की सतह पर, आमतौर पर पसली के दाहिने हिस्से पर जांच करता है। जांच त्वचा के माध्यम से यकृत तक हल्के कंपन उत्सर्जित करती है, जिससे कतरनी तरंगें बनती है, जिन्हें यकृत की कठोरता निर्धारित करने के लिए मापा जाता है। यह कठोरता रीडिंग लीवर के स्वास्थ्य का एक विश्वसनीय माप है। पूरी प्रक्रिया त्वरित, दर्द रहित है और इसमें एनेस्थीसिया की आवश्यकता नहीं होती है, जिससे यह कई रोगियों के लिए पसंदीदा विकल्प बन जाता है।

लिवर फाइब्रोस्कैन का उपयोग कैसे किया जाता है ?

  • लिवर फाइब्रोस्कैन का उपयोग मुख्य रूप से लिवर रोगों के निदान और निगरानी में किया जाता है, विशेष रूप से विभिन्न स्थितियों, जैसे हेपेटाइटिस सी, फैटी लिवर रोग, अल्कोहलिक लिवर रोग और अन्य के कारण होने वाले लिवर फाइब्रोसिस की प्रगति का आकलन करने में। फ़ाइब्रोस्कैन से प्राप्त परिणाम लीवर की क्षति की सीमा निर्धारित करने और उपचार संबंधी निर्णय लेने में सहायता करते है।
  • इसके अतिरिक्त, फ़ाइब्रोस्कैन परिणाम विशिष्ट हस्तक्षेपों की आवश्यकता का आकलन करने में मदद करते है, जैसे हेपेटाइटिस सी के लिए एंटीवायरल थेरेपी या फैटी लीवर रोग जैसी स्थितियों के लिए जीवनशैली में संशोधन। यह स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों को उपचार की प्रभावशीलता की निगरानी करने और आवश्यकतानुसार उन्हें समायोजित करने की अनुमति देता है, जिससे रोगी देखभाल के लिए अधिक व्यक्तिगत दृष्टिकोण की पेशकश की जाती है।

अगर आप अपने लिवर की जाँच को करवाना चाहते है तो इसके लिए आपको लुधियाना में फाइब्रोस्कैन का उपयोग जरूर से करना चाहिए।

लिवर फाइब्रोस्कैन के लाभ क्या है ?

  • लिवर फ़ाइब्रोस्कैन का मुख्य लाभ इसकी गैर-आक्रामक प्रकृति में शामिल है। परंपरागत रूप से, लीवर स्वास्थ्य मूल्यांकन में लीवर बायोप्सी जैसी आक्रामक प्रक्रियाएं शामिल होती है, जो न केवल असुविधाजनक होती है बल्कि कुछ जोखिम भी उठाती है। फ़ाइब्रोस्कैन इन जोखिमों और असुविधाओं को दूर करता है, जिससे यह एक सुरक्षित और अधिक रोगी-अनुकूल विकल्प बन जाता है।
  • इसके अलावा, यह जल्दी परिणाम प्रदान करता है, जिससे चिकित्सा पेशेवरों को रोगी के यकृत स्वास्थ्य का तुरंत मूल्यांकन करने और उपचार योजनाओं के बारे में समय पर, सूचित निर्णय लेने की अनुमति मिलती है। फ़ाइब्रोस्कैन की सहजता और दक्षता नियमित निगरानी को प्रोत्साहित करती है, जिससे बेहतर रोग प्रबंधन में योगदान मिलता है।

महत्वपूर्ण बातें !

लिवर फाइब्रोस्कैन तकनीक का विकास और व्यापक उपयोग लिवर रोग निदान और प्रबंधन में एक महत्वपूर्ण प्रगति का प्रतिनिधित्व करते है। इस प्रक्रिया की गैर-आक्रामक, तीव्र और सटीक प्रकृति वैश्विक स्तर पर लीवर की स्थितियों के निदान और प्रबंधन के तरीके को बदलने की क्षमता रखती है।

जैसे-जैसे लिवर स्वास्थ्य के क्षेत्र में अनुसंधान और प्रगति जारी है, लिवर फाइब्रोस्कैन के और अधिक विकसित होने की उम्मीद है, जो संभावित रूप से लिवर की स्थितियों में अधिक विस्तृत जानकारी प्रदान करेगा और इसके अनुप्रयोगों का विस्तार करेगा।

फाइब्रोस्कैन का उपयोग क्यों किया जाता है ?

  • फाइब्रोस्कैन एक गैर-इनवेसिव डायग्नोस्टिक टूल है, जिसका उपयोग लिवर के स्वास्थ्य का आकलन करने के लिए किया जाता है। यह लिवर की कठोरता को मापने के लिए एक विशेष प्रकार की अल्ट्रासाउंड तकनीक का उपयोग करता है जिसे क्षणिक इलास्टोग्राफी के रूप में जाना जाता है। फाइब्रोस्कैन का प्राथमिक उद्देश्य लिवर फाइब्रोसिस का निदान करना है, जो एक ऐसी स्थिति है जहां लिवर के ऊतक क्षतिग्रस्त हो जाते है और खराब हो जाते है, जिससे लिवर की शिथिलता हो जाती है।
  • लीवर फाइब्रोसिस कई कारकों के कारण हो सकता है, जिनमें हेपेटाइटिस बी और सी, शराब का दुरुपयोग और गैर-अल्कोहल फैटी लीवर रोग शामिल है। फाइब्रोस्कैन का उपयोग इन स्थितियों के कारण लीवर की क्षति की सीमा का पता लगाने के लिए किया जाता है।
  • प्रक्रिया दर्द रहित और गैर-इनवेसिव है, जो इसे लीवर बायोप्सी जैसी अधिक आक्रामक नैदानिक ​​प्रक्रियाओं का एक लोकप्रिय विकल्प बनाती है। फाइब्रोस्कैन के परिणाम डॉक्टरों को अपने रोगियों के लिए उपचार का सर्वोत्तम तरीका निर्धारित करने में मदद कर सकते है, जिसमें लिवर की कार्यक्षमता में सुधार के लिए दवा या जीवन शैली में बदलाव शामिल हो सकते है।
  • फाइब्रोस्कैन का उपयोग विभिन्न कारकों के कारण होने वाले लिवर फाइब्रोसिस के निदान के लिए किया जाता है और डॉक्टरों को उपचार का सर्वोत्तम तरीका निर्धारित करने में मदद करता है।

लुधियाना में फाइब्रोस्कैन का खर्च कितना आता है, इसके बारे में जानने के बाद ही इसका चयन करें।

याद रखें !

यदि आप लिवर की समस्या का सामना कर रहें है, तो इससे बचाव के लिए आपको कल्याण डायग्नोस्टिक्स सेंटर का चयन करना चाहिए।

निष्कर्ष :

लिवर फाइब्रोस्कैन एक अभूतपूर्व तकनीक है, जो लिवर स्वास्थ्य के मूल्यांकन और निगरानी में क्रांतिकारी बदलाव लाती है। इसकी गैर-आक्रामक प्रकृति, गति और सटीकता इसे यकृत रोगों के निदान और उचित उपचार रणनीतियों का निर्धारण करने में एक अमूल्य उपकरण बनाती है। अपनी निरंतर प्रगति के साथ, फ़ाइब्रोस्कैन रोगी की देखभाल बढ़ाने और यकृत की स्थिति वाले व्यक्तियों के परिणामों में सुधार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए तैयार है।

लिवर फाइब्रोस्कैन एक सरल, दर्द रहित और प्रभावी प्रक्रिया है। लिवर स्वास्थ्य के क्षेत्र में आशा की किरण के रूप में खड़ी है, जो दुनिया भर के रोगियों के लिए लिवर रोगों के बेहतर, अधिक कुशल प्रबंधन का वादा करती है।

जानिए 2D इको टेस्ट हार्ट ब्लॉक का पता लगाने में कैसे मददगार है ?

2D इकोकार्डियोग्राफी टेस्ट हार्ट की समस्याओं का पता लगाने में काफी मददगार साबित होते है। लेकिन इस टेस्ट को लेकर बहुत से लोगों के मन में ये सवाल होता है की क्या उन्हे इस टेस्ट का चयन अपने अच्छे स्वास्थ्य की समस्याओं को जानने के लिए करना चाहिए या नहीं, तो इसको लेकर आज एक लेख में चर्चा की जाएगी ;

2D इको टेस्ट क्या है ?

  • 2डी इकोकार्डियोग्राफी और कलर डॉप्लर एक ऐसा टेस्ट है जो दिल की सोनोग्राफी जितना ही अच्छा है। इन परीक्षणों में, आप हृदय को अंदर से देख सकते है जैसे हृदय की मांसपेशियां, वाल्व, रक्त प्रवाह, कक्ष का फैलाव, और हृदय कार्य करता है लेकिन आपको हृदय में ब्लॉक नहीं दिखाई देते है।
  • वहीं इकोकार्डियोग्राफी परीक्षण में आपके दिल की जीवंत छवियों को बनाने के लिए ध्वनि तरंगों का उपयोग किया जाता है। छवि बना कर दिल की स्थिति जानना इकोकार्डियोग्राम है। यह परीक्षण आपके डॉक्टर को यह देखने की अनुमति देता है कि आपका दिल और उसके सारे तत्व कैसे काम कर रहे है। दिल की कोई भी कमी जो विशेष कर दिल की अंदुरुनी होती है उन्हें इको से ढूंढा जा सकता है।

क्यों किया जाता है 2D इको टेस्ट ?

  • डॉक्टर आपके दिल की संरचना को देखने के लिए एक इको टेस्ट करवाने की सलाह आपको देते है और मूल्यांकन करते है कि आपका दिल कितनी अच्छी तरह काम कर रहा है। 
  • वहीं इको टेस्ट निम्नलिखित स्थितियों के निदान के लिए किया जाता है :-
  • हृदय में प्रवेश करने या छोड़ने वाली बड़ी रक्त वाहिकाओं से संबंधित समस्या का सामना करने वाले इसका चयन करते है। 
  • पेरीकार्डियम से संबंधित मुद्दे, यानी दिल की बाहरी के बारे में जानने के लिए इसका चयन किया जाता है। 
  • ह्रदय कक्षों के बीच किसी भी छेद की मौजूदगी का होना। 
  • ह्रदय के कक्षों में रक्त के थक्कों के जमने की मौजूदगी का होना। 
  • समय के साथ हृदय रोग की निगरानी को करना।
  • 2D इको टेस्ट करवाने के लिए आपको लुधियाना में बेस्ट रेडियोलॉजिस्ट का चयन करना चाहिए।

2D इको टेस्ट कैसे किया जाता है ?

  • यह एक साधारण परीक्षण है जो एक क्लिनिक में आउट पेशेंट के आधार पर किया जा सकता है, जहां आप मेज पर लेटते है, इसमें मुश्किल से 2 मिनट लगते है और डॉक्टर हृदय की कार्यप्रणाली को बता सकते है, लेकिन पुराने दिल के दौरे की पुष्टि करने के लिए यह एक अच्छा परीक्षण होगा दिल का दौरा यह भविष्य के दिल के दौरे की भविष्यवाणी नहीं कर सकता।
  • शुरू करने के लिए, रोगी को लेटने और कमर से ऊपर तक कपड़े निकालने का निर्देश दिया जाता है।
  • फिर उसे एक पेपर शीट या एक बेड शीट का उपयोग करके कवर किया जाएगा, जो पूर्वकाल छाती को उजागर करेगा।
  • इलेक्ट्रोड को रोगी के शरीर पर रखा जाएगा।
  • उसे गहरी साँस लेने या अपनी तरफ से झूठ बोलने से अपनी स्थिति बदलने के लिए कहा जा सकता है।
  • प्रक्रिया शुरू होने से पहले छाती पर एक विशेष इको-जेल लागू किया जाएगा।

2D इको टेस्ट का उद्देश्य क्या है ?

  • दिल के वाल्व का खराब होना। 
  • जन्मजात हृदय दोष की समस्या।  
  • दिल के दौरे के बाद दिल को संभावित नुकसान होना। 
  • दिल की सूजन का कोई भी लक्षण (पेरिकार्डिटिस)।
  • दिल की थैली के आसपास कोई तरल पदार्थ का जमा होना। 
  • हृदय में नर्म ध्वनि को ठीक करना।

2D इको टेस्ट की तैयारी कैसे करें ?

यह एक बहुत ही सुरक्षित परीक्षा है, जिसे विशेष रूप से व्यवस्थित वातावरण में प्रशिक्षित सोनोग्राफर के तहत किया जाना चाहिए। 

और इसमें किसी भी विशेष तैयारी की आवश्यकता नहीं है, लेकिन मधुमेह के रोगियों को सलाह दी जाती है कि वे इस प्रक्रिया से पहले डॉक्टर से परामर्श करें क्योंकि यदि कार्डियोलॉजिस्ट ऐसा सुझाते है, तो दवा की खुराक में संभावित परिवर्तन हो सकता है।

2D इको टेस्ट से हमें किन महत्वपूर्ण बातों के बारे में पता चलता है ?

  • इकोकार्डियोग्राम हृदय की दीवारों के मोटे होने या हृदय के कक्षों के बढ़ने के कारण हृदय के आकार में किसी भी परिवर्तन को प्रभावी ढंग से निर्धारित कर सकता है। हृदय के आकार में परिवर्तन का कारण बनने वाले मुख्य कारणों में उच्च रक्तचाप का क्षतिग्रस्त या कमजोर हृदय वाल्व का होना शामिल है।
  • इको रिपोर्ट इजेक्शन फ्रैक्शन और कार्डियक आउटपुट का प्रतिशत भी देती है (यानी एक मिनट में जितना रक्त पंप किया जाता है)। अपर्याप्त पंपिंग शक्ति वाला हृदय, हृदय की विफलता का कारण बन सकता है।
  • एक इकोकार्डियोग्राम की मदद से, डॉक्टर हृदय की मांसपेशियों को किसी भी नुकसान की पहचान कर सकता है, जो हृदय की सामान्य पंपिंग को प्रभावित कर सकता है।
  • एक इकोकार्डियोग्राम यह भी बता सकता है कि रक्त के रिसाव को रोकने के लिए आपके हृदय के वाल्व खुले और पूरी तरह से बंद है या नहीं।
  • एक इकोकार्डियोग्राम प्रमुख रक्त वाहिकाओं और हृदय के बीच असामान्य कनेक्शन, हृदय कक्षों से संबंधित मुद्दों और जन्म के समय मौजूद हृदय में किसी भी दोष की पहचान कर सकता है।

2D हार्ट ब्लॉक इको टेस्ट का खर्चा कितना आता है ?

  • लुधियाना में 2D इको टेस्ट का खर्च 1000 से 3000 रुपये के बीच हो सकता है। वहीं इसका खर्च निर्भर करता है की टेस्ट करने वाले रेडियोलॉजिस्ट का अनुभव कितना पुराना है और साथ ही हॉस्पिटल किस जगह पर स्थित है। 
  • इसके अलावा आप चाहें तो इस टेस्ट को कल्याण डायग्नोस्टिक्स हॉस्पिटल से भी करवा सकते है क्युकी यहां पर मरीज का टेस्ट अनुभवी डॉक्टरों के द्वारा किया जाता है और टेस्ट को करने के लिए आधुनिक या नवीनतम उपकरणों का भी प्रयोग किया जाता है।  

ध्यान रखे :

हार्ट अगर सुचारु रूप से चलेगा तभी जाकर हम किसी भी तरह की समस्या से खुद का बचाव आसानी से कर सकते है, और हार्ट को ठीक तरीके से हम किस तरह से चला सकते है इसके बारे में हम उपरोक्त बता चुके है।

निष्कर्ष :

हार्ट संबंधी समस्याओं के बारे में जानने के लिए किस तरह से 2D इको टेस्ट मददगार है, इसके बारे में हम आपको उपरोक्त्त बता ही चुके है। तो अगर आपको अपने हार्ट में किसी भी तरह की समस्या नज़र आए तो इससे बचाव के लिए आपको इस टेस्ट का चयन करना चाहिए।

क्‍या है डॉप्‍लर टेस्‍ट (Doppler Test) और प्रेगनेंसी में इस टेस्ट की जरूरत क्‍यों होती है ?

गर्भावस्था एक बहुत ही नाजुक स्टेज है महिलाओं की जिंदगी में। इस स्टेज में महिलाओं को अपने साथ-साथ अंदर पल रहें बच्चे का भी अच्छे से ध्यान रखना होता है और इस ध्यान को वह समय-समय पर होने वालें टेस्टों को करवा कर रख सकती है और उन्ही टेस्टों में एक टेस्ट डॉप्‍लर टेस्‍ट या स्‍कैन या अल्‍ट्रासाउंड है। हालांकि, कई गर्भवती महिलाओं काे इस बात की जानकारी नहीं होती है कि डॉप्‍लर टेस्‍ट क्‍यों करवाया जाता है और इससे क्‍या पता चलता है। तो वहीं अगर आप इस टेस्ट को करवाना चाहते है तो इसके बारे में जानकारी हासिल करने के लिए लेख के साथ अंत तक बने रहें ;

क्या है डॉप्‍लर टेस्‍ट (Doppler Test) ?

  • डॉप्‍लर स्‍कैन एक तरह का रेगुलर अल्‍ट्रासाउंड स्‍कैन ही होता है और इसमें हाई फ्रीक्‍वेंसी साउंड वेव्‍स का इस्‍तेमाल किया जाता है। नॉर्मल अल्‍ट्रासाउंड की तरह ही इसकी प्रक्रिया होती है और इसमें आप कंप्‍यूटर पर गर्भस्‍थ शिशु की तस्‍वीर देख सकते है।
  • रेगुलर अल्‍ट्रासाउंड से डॉप्‍लर स्‍कैन इसलिए अगल होता है, क्‍योंकि ये रक्‍त वाहिकाओं में रक्‍त के प्रवाह, खून के प्रवाह की गति, दिशा और खून के थक्‍के के बारे में भी बताता है। आजकल अधिकतर अल्‍ट्रासाउंड में इनबिल्‍ट डॉप्‍लर फीचर होता है और दोनों ही स्‍कैन एक साथ किए जा सकते है।

डॉप्‍लर टेस्‍ट (Doppler Test) क्यों किया जाता है ?

  • यदि पेट में जुड़वां बच्‍चे हों, शिशु रीसस एंटीबॉडीज से प्रभावित हो, शिशु का स्‍वस्‍थ विकास न हो रहा हो, पहली प्रेगनेंसी में शिशु का आकार छोटा रहा हो, पहले डिलीवरी से मिसकैरेज हुआ हो या डिलीवरी के वक्‍त बच्‍चा मर गया हो, डायबिटीज या हाई ब्‍लड प्रेशर से ग्रस्‍त प्रेगनेंट महिला को, जिनका बीएमआई (बॉडी मास इंडेक्‍स) कम या ज्‍यादा हो तो इन स्थितियों में डॉप्‍लर टेस्‍ट किया जाता है।
  • प्‍लेसेंटा ठीक तरह से काम कर रहा है या नहीं, और इसे शिशु को पर्याप्‍त ऑक्‍सीजन और पोषण मिल पा रहा है या नहीं, इस बात का पता लगाने के लिए भी डॉप्‍लर स्‍कैन किया जाता है।
  • डॉप्‍लर स्‍कैन से डॉक्‍टर को पता चलता है कि क्‍या शिशु की सेहत को ठीक करने के लिए कोई कदम उठाने या जल्‍दी डिलीवरी करवाने की जरूरत तो नहीं है।
  • वहीं डॉप्‍लर स्‍कैन को करवाने के लिए आपको लुधियाना में बेस्ट रेडियोलॉजिस्ट का चयन करना चाहिए।

क्या प्रेगनेंसी में महिलाएं डॉप्‍लर टेस्‍ट (Doppler Test) करवा सकती है ?

  • जी हां, गर्भवती महिला के लिए डॉप्‍लर स्‍कैन सुरक्षित है, लेकिन आपको एक प्रशिक्षित अल्‍ट्रासाउंड डॉक्‍टर से ही ये स्‍कैन करवाना है। इस अल्‍ट्रासाउंट से शिशु की सेहत के बारे में पूरी जानकारी पाने में मदद मिलती है।
  • आमतौर पर प्रेगनेंसी की तीसरी तिमाही यानी 36 और 40वें सप्‍ताह में ग्रोथ स्‍कैन के साथ डॉप्‍लर स्‍कैन किया जाता है। हालांकि, अगर गर्भावस्‍था में कोई परेशानी हो तो इससे पहले भी डॉप्‍लर टेस्‍ट करवाया जा सकता है।
  • तीसरी तिमाही से पहले डॉप्‍लर टेस्‍ट शिशु में जेनेटिक और कार्डिएक विकारों का पता लगाने के लिए किया जाना चाहिए। इस समय अल्‍ट्रासाउंड डॉक्‍टर को 5 से 10 मिनट से ज्‍यादा समय इस टेस्‍ट में नहीं लगाना चाहिए।
  • डॉप्‍लर और कलर स्‍कैन में थर्मल इंडेक्‍स थोड़ा अधिक होता है लेकिन फिर भी इसकी कम डोज सुरक्षित मानी जाती है। कम से कम समय के लिए आप इस स्‍कैन को कर सकते है। अधिकतर मामलों में डॉप्‍लर स्‍कैन सिर्फ कुछ मिनट के लिए ही किया जाना चाहिए।

कैसे किया जाता है डॉप्‍लर टेस्‍ट (Doppler Test) ?

  • नॉर्मल अल्‍ट्रासाउंड की तरह ही डॉप्‍लर स्‍कैन किया जाता है। और इसमें प्रेगनेंट महिला को टेबल पर लिटाकर पेट पर वॉटर बेस जैल लगाया जाता है। अब ट्रांसड्यूसर को पेट पर लगाया जाता है और इससे आप कंप्‍यूटर की स्‍क्रीन पर उसी समय अपने शिशु की तस्‍वीरें देख सकती है। 
  • इस स्‍कैन में केवल कुछ मिनट का समय लगता है और इसमें दर्द भी नहीं होता है।
  • ब्‍लड फ्लो को चेक करने के ल‍िए स्‍कैनर ध्‍वन‍ि तरंगों का इस्‍तेमाल भी किया जाता है। जबकि बात करें सामान्‍य अल्‍ट्रासाउंड की तो इसमें ब्‍लड फ्लो का पता नहीं लगाया जा सकता है। 

डॉप्‍लर टेस्‍ट (Doppler Test) से शिशु के बारे में क्या जानकारी मिलती है ?

  • श‍िशु की हलचल के बारे में पता चलता है।
  • प्रेगनेंसी में ब्‍लड फ्लो कैसा है, इसकी जानकारी म‍िलती है।
  • गर्भस्‍थ श‍िशु की बीमारी के बारे में भी पता चलता है। 
  • जुड़वां बच्‍चों की स्‍थि‍त‍ि के बारे में भी जानकारी मिलती है।

डॉप्‍लर टेस्‍ट करवाने से पहले लुधियाना में कलर डॉपलर टेस्ट का खर्च कितना आता है, इसके बारे में जरूर जानकारी हासिल करें।

क्या डॉप्‍लर टेस्‍ट (Doppler Test) का कोई जोखिम भी है ?

  • डॉप्‍लर टेस्‍ट वाला अल्ट्रासाउंड सुरक्षित है और इसे गर्भवती रोगियों की पसंद का इमेजिंग तरीका माना जाता है। 
  • मानक बी-मोड और एम-मोड अल्ट्रासाउंड तरंगों की तुलना में, डॉपलर तरंगों को उच्च ध्वनिक आउटपुट की आवश्यकता होती है और भ्रूण के ऊतकों को थर्मल क्षति का एक उच्च सैद्धांतिक जोखिम प्रदान करता है। 
  • जब भी संभव हो भ्रूण के मूल्यांकन के लिए डॉपलर तरंगों की तुलना में बी-मोड और एम-मोड अल्ट्रासाउंड तरंगों की सिफारिश की जाती है।

डॉप्‍लर टेस्‍ट (Doppler Test) के लिए बेस्ट हॉस्पिटल !

  • अगर आप डॉप्‍लर टेस्‍ट करवाने के बारे में सोच रहीं है, तो इसके लिए आपको कल्याण डायग्नोस्टिक्स हॉस्पिटल का चयन करना चाहिए और इस हॉस्पिटल में अनुभवी रेडियोलॉजिस्ट के द्वारा इस टेस्ट को किया जाता है। 
  • वहीं इस टेस्ट को करने के दौरान जिस सावधानी को बरतना चाहिए वो इस हॉस्पिटल में बखूबी निभाया जाता है। इसके अलावा यहाँ पर किफायती दाम में इस टेस्ट को किया जाता है और इस टेस्ट को करने के लिए आधुनिक उपकरणों का प्रयोग किया जाता है।

निष्कर्ष :

डॉप्‍लर टेस्‍ट का चयन गर्भवती महिलाओं को क्यों करना चाहिए उम्मीद करते है, की आपको पता चल गया गया होगा। वहीं इस टेस्ट के दौरान किन बातो को ध्यान में रखना चाहिए और इस टेस्ट को किन डॉक्टरों के द्वारा करवाया जाना चाहिए, इसके बारे में भी हम आपको उपरोक्त बता चुके है। बस ध्यान रखें इसको करवाने के लिए किसी अनुभवी रेडियोलॉजिस्ट का ही चयन आपको करना चाहिए। 

शुरुआती दौर के स्तन कैंसर का पता लगाने के लिए मैमोग्राफी क्या भूमिका अदा करती है?

स्तन का कैंसर महिलाओं में काफी गंभीर समस्या मानी जाती है। वहीं इस तरह के कैंसर का शिकार ज्यादातर महिलाएं होती है। और तो और इस तरह के कैंसर का पता महिलाओं को भी नहीं लगता और जब ये काफी उभर जाती है, तब जाकर इस तरह की समस्या का पता उन्हें कुछ माइनो में लगता है। इसके अलावा हम आज के लेख में चर्चा करेंगे की आप कैसे मैमोग्राफी की मदद से स्तन कैंसर का पता लगा सकते है, क्युकि मैमोग्राफी एक ऐसी जाँच है जिसके बारे में महिलाओं को पता ही नहीं होता इसलिए आज के लेख के माध्यम से हम आपको मैमोग्राफी क्या है इसका चयन कब करना चाहिए और स्तन कैंसर के लिए ये कैसे वरदान साबित होती है इसके बारे में चर्चा करेंगे ;

स्तन कैंसर की जाँच में मैमोग्राफी कैसे एहम भूमिका निभाती है ?

  • स्तन कैंसर महिलाओं को होने वाला सबसे आम कैंसर के प्रकार में से एक है। स्तन कैंसर इतना गंभीर है कि महिलाओं को इसकी वजह से कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जिसमें जान जाने का जोखिम भी शामिल है। 
  • स्तन कैंसर की पहचान और निदान के लिए मैमोग्राफी नामक एक विशेष जांच की जाती है। कहा जाता है कि एक उम्र के बाद महिलाओं को साल भर में एक से दो बार सामान्य रूप से मैमोग्राफी जांच करवानी चाहिए, क्योंकि महिलाएं स्तन कैंसर के जोखिम में ज्यादा रहती है। 
  • मैमोग्राफी की मदद से महिलाओं में जो स्तन कैंसर के ऊतक उभर रहें है, उसका निदान आसानी से किया जा सकता है। 

स्तन कैंसर के लक्षण क्या है ?

  • स्तन के आकार में परिवर्तन का आना। 
  • स्तन में कोई गांठ या मोटेपन की समस्या का आना। 
  • निप्पल पर या उसके आसपास लाली या दाने का आना। 
  • निप्पल से स्राव की समस्या। 
  • ब्रेस्ट या आर्मपिट में लगातार दर्द का होना। 
  • उलटा निप्पल या उसकी स्थिति या आकार में परिवर्तन का आना। 
  • त्वचा की बनावट में बदलाव का आना आदि।

मैमोग्राफी जाँच क्या है ?

  • मैमोग्राम स्तन की एक एक्स-रे तस्वीर है। स्तन कैंसर के शुरुआती लक्षणों को देखने के लिए डॉक्टर मैमोग्राम या मैमोग्राफी का उपयोग करते है। नियमित मैमोग्राम सबसे अच्छे परीक्षण होते है, जिससे डॉक्टरों को स्तन कैंसर का जल्द पता लगता है, कभी-कभी इसे महसूस किए जाने से तीन साल पहले तक। यदि आप एक नया लक्षण विकसित करते है, जैसे कि गांठ, दर्द, निप्पल डिस्चार्ज या स्तन की त्वचा में परिवर्तन, तो किसी भी असामान्यता को देखने के लिए प्रदाता मैमोग्राफी का उपयोग कर सकते है। मैमोग्राफी को डायग्नोस्टिक मैमोग्राम भी कहा जाता है।
  • मैमोग्राम में अधिकांश निष्कर्ष सौम्य, या गैर-कैंसर वाले होते है। वास्तव में, 10 में से 1 से भी कम लोग जिन्हें मैमोग्राम के बाद अतिरिक्त परीक्षणों की आवश्यकता होती है, उन्हें कैंसर होता है।
  • यदि आपको स्तन कैंसर की समस्या का सामना करना पड़ रहा है, तो इसे जानने के लिए आपको लुधियाना में बेस्ट रेडियोलॉजिस्ट का चयन करना चाहिए।

मैमोग्राफी कितने प्रकार की है ?

मैमोग्राफी को मुख्यतः दो तरह से किया जाता है ;

  • 2डी में डिजिटल मैमोग्राफी :
  • डिजिटल मैमोग्राफी एक इलेक्ट्रॉनिक छवि प्रदान करती है, जिसे कंप्यूटर फ़ाइल के रूप में इकट्ठा किया जाता है। डिजिटल मैमोग्राफी स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं को फ़ाइल को इलेक्ट्रॉनिक रूप से सहेजने और छवियों का अधिक आसानी से मूल्यांकन और साझा करने की अनुमति देती है। 
  • एक डिजिटल मैमोग्राम में आमतौर पर अलग-अलग कोणों पर लिए गए प्रत्येक स्तन की कम से कम दो तस्वीरें शामिल होती है। आमतौर पर ऊपर से नीचे और बगल से और एक 2डी दृश्य प्रदान करती है।

3डी में डिजिटल मैमोग्राफी :

3डी मैमोग्राफी, जिसे डिजिटल ब्रेस्ट टोमोसिंथेसिस (DBT) के रूप में भी जाना जाता है, जो एक नए प्रकार का मैमोग्राम है, जिसमें प्रत्येक स्तन को एक बार संकुचित किया जाता है और एक मशीन कई लो-डोज़ वाली एक्स-रे लेती है, क्योंकि यह आपके स्तन के ऊपर एक चाप में चलती है। एक कंप्यूटर तब छवियों को एक साथ रखता है, जो स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं को आपके स्तन के ऊतकों को तीन आयामों में अधिक स्पष्ट रूप से देखने की अनुमति देता है।

महिलाओं को मैमोग्राफी का सहारा किस उम्र में लेना चाहिए ?

  • वैसे तो हर उम्र की महिला स्तन कैंसर के जोखिम में होती है, लेकिन यह किशोरियों और युवतियों में इतना गंभीर नहीं है, जितना अधेड़ावस्था और वृद्धावस्था की महिलाओं को अपनी गिरफ्त में लेता है। इसलिए अक्सर डॉक्टर 40 साल की उम्र की महिलाओं को स्क्रीनिंग करवाने के लिए कहते है, क्योंकि स्क्रीनिंग मैमोग्राम स्तन कैंसर का जल्दी पता लगा सकता है और जितनी जल्दी कैंसर का पता चलेगा, उतनी ही जल्दी आपका उपचार शुरू किया जा सकता है। 
  • आपको बता दें कि 40 और 50 के दशक में महिलाओं के यादृच्छिक (सामान्य) परीक्षणों से पता चला है कि स्क्रीनिंग मैमोग्राम स्तन कैंसर से मरने के जोखिम को कम करता है। लेकिन एहम बात ये है की भारत में स्तन कैंसर का निदान करना आसान नहीं है, क्योंकि भारतीय महिलाएं, अपने स्वास्थ्य की ओर ज्यादा ध्यान नहीं देती है और समस्याओं का घर पर ही उपचार करने का सोचती है। 
  • लेकिन कही न कही देखा जाए, तो उनके ऐसा करने के पीछे का एहम कारण जागरूकता में कमी भी हो सकती है। इसलिए अगर आप जानना चाहती है की मैमोग्राफी क्या है तो इसके लिए आपको ब्लॉग को अंत तक जरूर से पढ़ना चाहिए।

मैमोग्राफी जाँच की तैयारी कैसे करें ?

  • यदि आप स्तनपान करा रही है, और गर्भवती है या आपको लगता है कि आप गर्भवती हो सकती है, तो अपने स्वास्थ्य सेवा प्रदाता या डॉक्टर को जरूर बताएं। जिससे वे आपको एक स्तन अल्ट्रासाउंड का सुझाव दे सकते है।
  • यदि आप मासिक धर्म का अनुभव करती है, तो कोशिश करें कि माहवारी आने से एक सप्ताह पहले या मासिक धर्म के दौरान अपना मैमोग्राम शेड्यूल न करें। इस दौरान आपके स्तन कोमल हो सकते है, जो प्रक्रिया को और अधिक असहज कर सकते है।
  • यदि आपके पास स्तन प्रत्यारोपण है या हाल ही में एक टीका लगाया गया है, तो शेड्यूलर को बताना सुनिश्चित करें।
  • वहीं मैमोग्राफी की जाँच वाले दिन आपको अपनी दिनचर्या का अच्छे से पालन करना है, जैसे – खूब खाएं-पिएं और अपनी सामान्य दवाइयां लेना ना भूले।
  • डिओडोरेंट, परफ्यूम, लोशन या बॉडी पाउडर न लगाए। ये उत्पाद एक्स-रे छवियों की सटीकता में बाधा बन सकते है।
  • कुछ लोग अपने मैमोग्राम के दिन ड्रेस के बजाय टॉप और बॉटम पहनना पसंद करते है। वहीं इमेजिंग प्रक्रिया के दौरान आपको अपनी कमर से ऊपर की ओर कपड़े उतारने होंगे। आपके पास पहनने के लिए बस एक मेडिकल गाउन या कपड़ा होगा। 

मैमोग्राफी में खर्चा कितना आता है ? 

  • लुधियाना में मैमोग्राफी का खर्च टेस्ट के प्रकार पर निर्भर करता है। वहीं बता दें की एक नियमित स्तन स्कैन की कीमत रुपये के बीच हो सकती है। एक नियमित स्तन स्कैन की कीमत 1,500 रुपये से 2,000 रुपये के बीच हो सकती है। 
  • जबकि डिजिटल मैमोग्राम की कीमत 8,000 रुपये तक हो सकती है। 

मैमोग्राफी जाँच के दौरान क्या होता है ?

  • आपको अपनी कमर के ऊपर के सभी कपड़े और गहने निकालने पड़ते है। और मौजूदा जांच करता आपको एक ओपन-फ्रंट हॉस्पिटल गाउन या ड्रेप पहनने के लिए देंगे।
  • जांच के दौरान आप एक मैमोग्राफी मशीन के सामने खड़े होंगे, और टेक्नोलॉजिस्ट आपको अपने गाउन से एक बार में एक ब्रेस्ट निकालने के लिए कहेंगे। और आप अपने ब्रेस्ट को ब्रेस्ट सपोर्ट प्लेट पर रखेंगी।
  • फिर टेक्नोलॉजिस्ट आपके ब्रेस्ट को सपोर्ट प्लेट से कंप्रेस करने के लिए प्लास्टिक पैडल को नीचे कर देंगे। संपीड़न की 3 से 5 सेकंड की अवधि के दौरान आपको कुछ असुविधा या दबाव महसूस हो सकता है। यदि आप दबाव को सहन करने में असमर्थ है, तो टेक्नोलॉजिस्ट को बताएं ताकि आपकी समस्या का समाधान हो सकें।  
  • संकुचित होने पर मशीन आपके स्तन का एक्स-रे लेगी।
  • यदि आपके दो स्तन है, तो आप इस प्रक्रिया को अपने दूसरे स्तन के लिए दोहराएंगे।
  • एक बार जब टेक्नोलॉजिस्ट मशीन से एक्स-रे ले लेते है, तो प्रक्रिया समाप्त हो जाती है। इसके बाद आप अपने कपड़े वापस पहन लेंगे और अपने परिवार के पास जा सकते है।

आप चाहें तो इस जाँच को कल्याण डायग्नोस्टिक्स हॉस्पिटल से भी किफायती दाम में करवा सकते है।

निष्कर्ष :

स्तन कैंसर का पता कैसे लगा सकते है इसके बारे में हम आपको उपरोक्त बता चुके है। और साथ ही मैमोग्राफी टेस्ट का चयन आपको कब करना चाहिए और लक्षण कैसे मददगार होते है स्तन कैंसर को जानने में इसके बारे में भी आपको हम उपरोक्त बता चुके है। पर ध्यान रहें इसके लक्षणों को कृपया नज़रअंदाज़ करने की कोशिश न करें वर्ना इसमें जान जाने का भी खतरा हो सकता है।

जानिए क्या है मैमोग्राफी और ये कैसे स्तन कैंसर मरीजों के लिए है वरदान ?

आज के समय की बात की जाए तो महिलाओं में स्तन कैंसर के मामले काफी सुनने में आ रहें, वहीं ये कैंसर इतना खतरनाक होता है की इसके होने से महिलाओं की मौत तो निश्चित है। तो स्तन कैंसर से मरने वालों में से आधे से ज्यादा लोगों को इसका पता ही 3 या 4 स्टेज में चलता है, और इस स्टेज के मरीजों का इलाज मिलना काफी मुश्किल हो जाता है, पर आज हम मैमोग्राफी के बारे में आपको बताने जा रहें जिसका चयन करके आप स्तन कैंसर का पता आसानी से लगा सकते है ;

लक्षण क्या नज़र आते है स्तन कैंसर के ?

  • स्तन के आकार में परिवर्तन का आना। 
  • स्तन में कोई गांठ या इसका मोटा होना जैसा कुछ दिखाई देना। 
  • निप्पल पर या उसके आसपास लाली या दाने। 
  • निपल से स्राव का आना। 
  • ब्रेस्ट या आर्मपिट में लगातार दर्द का होना। 
  • उलटा निप्पल या उसकी स्थिति या आकार में परिवर्तन का आना। 
  • त्वचा की बनावट में बदलाव का आना।

क्या है मैमोग्राफी ?

  • मैमोग्राफी में महिलाओं के स्तनों की जांच और स्क्रीनिंग के लिए सबसे आम तकनीक है, विशेष रूप से उन महिलाओं के लिए जिनको स्तन कैंसर होता है या फिर होने का खतरा रहता है। 
  • यदि ब्रेस्ट में कोई गांठ हो या सूजन हो तो भी मैमोग्राफी जरूर कराएं। इसके अलावा उपरोक्त लक्षणों को जानकर आप मैमोग्राफी टेस्ट का चयन कर सकते है। 

पर ध्यान रहें मैमोग्राफी टेस्ट का चयन लुधियाना में बेस्ट रेडियोलॉजिस्ट से ही करवाए।

मैमोग्राफी के दौरान क्या होता है ?

  • मैमोग्राफी के दौरान एक सपाट एक्स-रे प्लेट पर दोनों स्तनों को सटाया जाता है। एक्स-रे में स्पष्ट इमेज हासिल करने के लिए स्तन को दबाने के लिए कम्प्रेशर का इस्तेमाल किया जाता है। अगर चिकित्सक को कुछ ज्यादा जानकारी की जरूरत हो तो इस प्रक्रिया को कई बार किया जा सकता है। 
  • वहीं कई बार तो डिजिटल मैमोग्राफी भी की जाती है। ताकि यह एक्स रे इमेज को स्तन की इलेक्ट्राॅनिक पिक्चर्स में भेज सके।

मैमोग्राफी टेस्ट से पहले कौन-सी तैयारियां की जाती है !

  • इस प्रक्रिया के जरिये ब्रेस्ट कैंसर का निदान किया जाता है। यह एक एक्स-रे की तरह ही होता है, जिसका प्रयोग ब्रेस्ट कैंसर के निदान के लिए किया जाता है।
  • मैमोग्राफी के जरिये ब्रेस्ट के ऊतकों के इमेज को देख सकते है और इसके जरिए स्तन कैंसर की पहचान भी आसानी से की जाती है।
  • जिस दिन आपका मैमोग्राम होता है उस दिन पाउडर, लोशन, इत्र और क्रीम अपने ब्रेस्ट पर लगाने से बचें।
  • मैमोग्राफी के दौरान कुछ महिलाओं को बेचैनी हो सकती है, क्योंकि, मैमोग्राम के दौरान कुछ समय के लिए सांसों को रोकने के लिए कहा जा सकता है |
  • पीरियड्स के समय मैमोग्राफी की जाँच न कराएं।
  • यदि आपके ब्रेस्ट में कोमलता है, तो आप अपने डॉक्टर को बताये और उनसे जांच कराएं।
  • जब भी मैमोग्राम कराएं, तो उससे दो दिन पहले कैफीन का सेवन न करें।

मैमोग्राफी टेस्ट की लागत क्या है ?

  • लुधियाना में मैमोग्राफी टेस्ट का खर्च 1500 से 2000 रूपए तक आ सकता है।  
  • जबकि डिजिटल मैमोग्राम की कीमत 8,000 रुपये तक हो सकती है, लेकिन इस टेस्ट की कीमत निर्भर करती है की हॉस्पिटल और डॉक्टर का अनुभव कितना है और साथ ही हॉस्पिटल किस जगह पर स्थित है।

स्तन कैंसर से जुडी जटिलताएं क्या हो सकती है ?

  • चूंकि मैमोग्राफी एक एक्स-रे होता है, इसलिए आपके बाॅडी को काफी कम संख्या में रेडिएशन प्राप्त होगा। हालांकि इन रेडिएशन से जुड़ा जोखिम काफी कम होता है। 
  • यदि किसी गर्भवती महिला को तत्काल में मैमोग्राफी कराने की जरूरत पढ़ जाती है, तो उसे और उसके शिशु को किसी भी तरह के जोखिमों से बचाने के लिए उस महिला को इस टेस्ट के दौरान एक लीड एप्रन पहनाने की जरूरत होती है।
  • बाकी इस टेस्ट के किसी भी प्रकार का कोई भी जोखिम नहीं है, वहीं इस टेस्ट को करवाने से पहले डॉक्टर की बातों को जरूर ध्यान में रखें।

मैमोग्राफी का उद्देश्य क्या है ?

  • मैमोग्राफी के उद्देश्य में स्क्रीनिंग सबसे पहले की जाती है, इसके बाद यह स्तन में असामान्य परिवर्तन का पता लगा सकते है। 50 साल और उससे अधिक उम्र की महिलाओं को हर साल मैमोग्राफी जांच कराने की सलाह दी जाती है। डॉक्टर मैमोग्राफी स्क्रीनिंग के साथ अन्य परीक्षणों की सलाह दे सकते है। यदि किसी महिला को कोई समस्या होती है, तो इसके जरिए पता लगाया जाता है।
  • स्तन कैंसर या ट्यूमर के प्रारंभिक विकास और स्टेजों का पता लगाने के लिए यह परिक्षण लाभदायक होता है।
  • फाइब्रोएडीनोमा महिलाओं में एक मेडिकल स्थिति है, जो स्तन में गैर-कैंसरयुक्त गांठ का कारण बनती है। गैर-कैंसर वाली गांठ खतरनाक नहीं होती है और न ही इससे कोई बीमारी होती है, परन्तु इसका पता अवश्य लगाना चाहिए जो की मैमोग्राफी की मदद से लगाया जा सकता है।

सुझाव :

स्तन कैंसर का पता लगाना बहुत जरूरी है और ये पता आप मैमोग्राफी की मदद से लगा सकते है। वहीं आप चाहें तो मैमोग्राफी की जाँच को कल्याण डायग्नोस्टिक्स हॉस्पिटल से वाजिफ दाम में करवा सकते है। 

कैंसर से पीड़ित व्यक्ति के रोगों को जानने के लिए एमआरआई (MRI) स्कैन कैसे है सहायक ?

एमआरआई (MRI) स्कैन जिससे एक नहीं बल्कि कई सारी बीमारियों का पता चलता है, वहीं अक्सर व्यक्ति में किसी भी तरह की बीमारी अगर नज़र आए तो सबसे पहले डॉक्टर के द्वारा सलाह दी जाती है व्यक्ति को की वो अपना एमआरआई स्कैन करवाए, वहीं आज के लेख में चर्चा का विषय ये है की कैंसर के दौरान व्यक्ति कैसे अपना एमआरआई (MRI) स्कैन करवाकर खुद को बचा सकता है ;

क्या है एमआरआई (MRI) स्कैन ?

  • एमआरआई जिसे ‘मैग्नेटिक रेसोनेंस इमेजिंग’ जांच के रूप में जाना जाता है। 
  • वहीं इसमें शरीर के अंदर की उच्च गुणवत्ता वाली, विस्तृत तस्वीरें बनाने के लिए एक बड़े चुंबक, रेडियो तरंगों और कंप्यूटर का उपयोग किया जाता है। 
  • एमआरआई जांच में दर्द नहीं होता, जिसके चलते इस टेस्ट को कोई भी करवा सकता है। 
  • इसके अलावा एमआरआई स्कैन डॉक्टरों के लिए काफी मददगार साबित होते है, क्युकि इस टेस्ट की मदद से उनको बीमारी का अच्छे से पता चलता है. और बीमारी का अच्छे से पता होने के कारण व्यक्ति का इलाज भी अच्छी तरीके से किया जाता है। 
  • अगर आपको भी अपनी बीमारी का अच्छे से पता लगाना है तो इसके लिए आपको लुधियाना में बेस्ट रेडियोलॉजिस्ट का चयन करना चाहिए।

एमआरआई (MRI) स्कैन करवाने के दौरान क्या दिखाई देता है ?

  • एक एमआरआई स्कैन आपके अंदर के अंगों की क्रॉस-सेक्शन छवियों को उत्पन्न करता है। 
  • दूसरी ओर, एमआरआई विकिरण के बजाय शक्तिशाली चुम्बकों के साथ चित्र बनाता है। 
  • एक एमआरआई स्कैन आपके शरीर के क्रॉस-सेक्शनल दृश्य को विभिन्न कोणों से एकत्र करता है जैसे कि आपके शरीर के एक टुकड़े को सामने, बगल या आपके सिर के ऊपर से देख रहा हो। 
  • एमआरआई शरीर के नरम ऊतक क्षेत्रों की छवियां उत्पन्न करता है जिन्हें पारंपरिक इमेजिंग तकनीकों के साथ देखना मुश्किल होता है। एमआरआई का उपयोग करके कुछ ट्यूमर पाए जा सकते है और उनका पता लगाया जा सकता है। 
  • मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी में विकृतियों का पता लगाने के लिए कंट्रास्ट डाई वाला एमआरआई सबसे प्रभावी तकनीक है। 
  • एमआरआई से डॉक्टर कभी-कभी पता लगा सकते है कि व्यक्ति को ट्यूमर कैंसर है या नहीं। 
  • एक चुंबकीय अनुनाद इमेजिंग (एमआरआई) स्कैन का उपयोग इस बात के प्रमाण की जांच के लिए भी किया जा सकता है कि कैंसर शरीर के किसी अन्य क्षेत्र से उत्पन्न हुआ है या नहीं।
  • एमआरआई स्कैन सर्जरी या विकिरण चिकित्सा जैसे उपचारों की योजना बनाने में डॉक्टरों की काफी मदद करते है।
  • वहीं स्तन के आंतरिक भाग की जांच के लिए एक विशेष प्रकार के एमआरआई का उपयोग किया जा सकता है।

एमआरआई (MRI) स्कैन में कितना समय लगता है ?

सामान्य एमआरआई स्कैन में 20 से 90 मिनट का समय लगता है, बाकि यह शरीर के जांच वाले अंग पर निर्भर करता है। 

एमआरआई (MRI) स्कैन की जाँच करवाने से पहले एक बार लुधियाना में MRI का खर्च कितना है उसके बारे में जरूर जानकारी हासिल करें।

एमआरआई (MRI) स्कैन की जटिलताएं क्या है ? 

  • मतली की समस्या। 
  • सुई स्थल पर दर्द का होना। 
  • एक सिरदर्द जो परीक्षण समाप्त होने के कुछ घंटों बाद दोबारा विकसित होता है। 
  • रक्तचाप के कारण हल्कापन या बेहोशी का महसूस होना आदि।

एमआरआई (MRI) स्कैन से जुडी और किन बातों का पता होना चाहिए !

  • एमआरआई में काफी खर्च हो सकता है, इसलिए जरूरी है की आपके पास आपका स्वास्थ्य बीमा जरूर होना चाहिए।
  • अधिक वजन वाले लोगों को एमआरआई मशीन में फिट होने में परेशानी हो सकती है।
  • गर्भावस्था के दौरान एमआरआई के उपयोग का अच्छी तरह से अध्ययन नहीं किया जाता है। एमआरआई आमतौर पर गर्भावस्था के पहले 12 हफ्तों में नहीं किया जाता है जब तक कि इसका उपयोग करने के लिए कोई मजबूत चिकित्सा कारण न हो।
  • परीक्षा कक्ष में क्रेडिट कार्ड या चुंबकीय स्कैनिंग स्ट्रिप्स के साथ अन्य सामान न लाएं।
  • एमआरआई आपको विकिरण के संपर्क में नहीं लाता है।

एमआरआई (MRI) जाँच के लिए बेस्ट हॉस्पिटल !

आप अगर एमआरआई (MRI) की जाँच को करवाना चाहते है वो भी किफायती दाम में तो इसके लिए आपको कल्याण डायग्नोस्टिक्स हॉस्पिटल का चयन करना चाहिए, क्युकि यहाँ पर मरीजों की जाँच काफी अनुभवी डॉक्टरों के द्वारा की जाती है।